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Monday, January 29, 2007

अभीव्यक्ति की आकुलता मे....!!!

"अभीव्यक्ति की आकुलता मे,
विवश कहीं उद्वेलित मन
भावों का आगार ह्रदय पर
नीरवता का कैसा आन्दोलन

प्रतिपल विचरित उद्गार सहस्र
पर विस्मृति का एक आलीन्गन
अधर मौन मस्तिष्क शुन्य
जीवित ह्रदय बिना स्पंदन

दर्शन उस नेत्र सागर का
विवश अधर शब्दों के अकिंचन
मन प्रशांत भयभीत किन्तु है
स्वर फूटे,आशय की उलझन

स्वप्न सहस्र लुप्त पल भर मे
पर वो पल ही मेरा जीवन
उस पल मे शब्द परिधि को
कैसे बनाऊ प्रेम का बंधन

कहो तुम ही कैसे व्यक्त करूँ
पुनीत निर्मल प्रेम अभिलाषा
हर प्रयत्न निष्फल अधरों का
समझो तुम नेत्रों की भाषा "