आंखों से समंदर अभी उतरा नही,
और तुम्हे!
होठों को गले लगाने की तमन्ना है?
फासलों की क़द्र कर,
दिल के जज्बात छुपाकर,
लोग दो बूँद अश्क बहा दिया करते हैं
और तुम्हे!
हर बूँद को जश्न मे तब्दील करने की तमन्ना है?
जब आँखें ख्वाबों के आँचल मे लिपटकर,
दो रूहों के मीलन को
इश्क के धागे से बुना करती थी
रौशनी बिखर जाती थी पर
अंगडाई दस्तक न दिया करती थी
तब होठ चुपचाप हर दास्ताँ की गवाही दिया करते थे
कभी गजले बनाकर शौक से महफिल सजाया करते थे
और तुम्हे!
खामोश गजलों के, अल्फाज़ बदलने की तमन्ना है?
लाखों परिवारों की बस्ती,
तुम्हारेे अन्दर सफर किया करती हैं
कोई जोरू जब-तब तुम्हारे आगोश मे,
अपनी किस्मत तलाशा करती है
बादशाहों की सल्तनत ने,
तुम्हारे आईने मे कई हसीन नजारें देखे हैं
और तुम्हे!
अब एक लाश को कब्र मे दफनाने की तमन्ना है?
Tuesday, March 11, 2008
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